मोसाद और अदाणी के ऑपरेशन ज़ेपेलिन से बौखलाया हिंडनबर्ग का फाउंडर

भारतीय मीडिया के रवैये को लेकर बिफरा एंडरसन
जब ऑपरेशन ज़ेपेलिन की खुफिया रिपोर्ट्स दुनिया के कुछ चुनिंदा कॉरिडोर्स में घूम रही थीं, तब न्यूयॉर्क के इनवुड में स्थित अपने साधारण से ऑफिस में बैठा नाथन ‘नेट’ एंडरसन बेहद तनाव में था। दुनिया के सबसे तेज़ी से उभरते बाज़ारों में से एक – भारत – में उसकी बनाई गई रिपोर्ट पर सवाल उठाए जा रहे थे। लेकिन बात यहीं तक नहीं थी।
एंडरसन भारतीय मीडिया के रवैये को लेकर अपना आपा खो बैठा। उसने कहा, “इंडियन मीडिया एकतरफा बकवास फैला रहा है। यह पत्रकारिता नहीं, एक राष्ट्र-प्रायोजित प्रतिशोध है। कोई भी हमारी रिसर्च पर बात नहीं कर रहा, सिर्फ अदाणी का पक्ष गाया जा रहा है।”
यह वही समय था जब भारतीय मीडिया नेटवर्क, विशेषकर न्यूज चैनलों और अखबारों ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट की पृष्ठभूमि को गहराई से खंगालना शुरू किया था। कुछ ने इसे एक नियोजित विदेशी साज़िश कहा, तो कुछ ने इसे भारत की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने का एक “फाइनेंशियल टेरर अटैक” बताया।
नेट एंडरसन, जो अब तक खुद को “ट्रुथ हंटर” मानता था, अचानक रक्षात्मक मुद्रा में आ गया। उसने एक छोटे वर्चुअल मीटिंग में झल्लाते हुए कहा, “अगर ये लोग मानते हैं कि मैं अकेला हूं, तो वो गलत हैं। ये सिर्फ शुरुआत है।”
लेकिन उसकी यह बौखलाहट ऑपरेशन ज़ेपेलिन टीम के लिए सबूत थी कि ऑपरेशन का दबाव असर दिखा रहा है। भारत के मीडिया में उसके नेटवर्क, उसकी मंशा और उसकी फंडिंग पर उठते सवाल अब उस नैरेटिव को चुनौती देने लगे थे, जिसे वह महीनों से गढ़ता चला आ रहा था।
ऑपरेशन ज़ेपेलिन: अदाणी और मोसाद का हिंडनबर्ग के खिलाफ गुप्त मिशन
जब जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अदानी ग्रुप पर गंभीर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए, तो पूरा विश्व चौंक उठा। भारत की अर्थव्यवस्था के एक मजबूत स्तंभ पर सीधा हमला था। पर जो दुनिया ने नहीं देखा, वो था एक गुप्त ऑपरेशन—ऑपरेशन ज़ेपेलिन। इस ऑपरेशन की शुरुआत तब हुई जब अदाणी समूह की इंटेलिजेंस टीम ने इस रिपोर्ट के पीछे एक वैश्विक साज़िश की बू महसूस की। डिजिटल निशान, संदिग्ध ईमेल, और कुछ विदेशी फंडिंग ट्रेल्स ने एक बड़े नेटवर्क की ओर इशारा किया। भारत के भीतर यह सिर्फ कारोबारी संकट नहीं था, बल्कि एक रणनीतिक हमला था।
इसी वक्त मोसाद का प्रवेश हुआ। अदाणी समूह के वैश्विक संबंध और रणनीतिक निवेशों के चलते इज़रायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने इस मामले में दिलचस्पी दिखाई। एक संयुक्त मिशन तैयार हुआ—नाम रखा गया ऑपरेशन ज़ेपेलिन।
इस ऑपरेशन का मकसद था – हिंडनबर्ग रिपोर्ट के पीछे छिपे वास्तविक खिलाड़ियों को बेनकाब करना, डिजिटल सबूत इकट्ठा करना और मीडिया नैरेटिव को पलटना।
सिंगापुर, दुबई, न्यूयॉर्क और तेल अवीव में खुफिया टीमें सक्रिय हुईं। फर्जी शेल कंपनियों की पड़ताल हुई। पता चला कि रिपोर्ट के पीछे कुछ बड़े हेज फंड्स, एक वैश्विक डेटा एजेंसी और कुछ भारतीय कारोबारी प्रतिस्पर्धी भी शामिल थे, जो भारत की इमर्जिंग इकॉनमी को चोट पहुँचाना चाहते थे।
मोसाद के साइबर एक्सपर्ट्स ने डेटा को ट्रेस कर रिपोर्ट की कच्ची फाइलों तक पहुंच बना ली। वहीं अदानी की मीडिया सेल ने भारत में पॉजिटिव नैरेटिव्स को मजबूत किया, ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले प्रोजेक्ट्स की सच्चाई को उजागर किया। कुछ ही महीनों में शेयर बाजार संभला, निवेशकों का भरोसा लौटा।
ऑपरेशन ज़ेपेलिन, भारत के कॉरपोरेट इतिहास की सबसे बड़ी गुप्त रणनीति बन गया—जहां कारोबारी जंग को खुफिया हथियारों से लड़ा गया, और एक भारतीय कंपनी ने वैश्विक मंच पर खुद को फिर से स्थापित किया।
