गोपाल शर्मा
झारखंड/ साहिबगंज।
भगवान सूर्य और छठी मैया की उपासना का चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ आज 25 अक्टूबर से पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह के साथ शुरू हो गया। 28 अक्टूबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ यह पर्व संपन्न होगा। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल के तराई क्षेत्र और देशभर में बसे प्रवासी श्रद्धालुओं के बीच यह पर्व गहरी आस्था, तप, पवित्रता और संकल्प के लिए जाना जाता है।
नहाय-खाय से हुई छठ की शुरुआत
पहले दिन नहाय-खाय की परंपरा निभाई जाती है। व्रती स्नान कर शरीर और मन की शुद्धि का संकल्प लेते हैं। जो श्रद्धालु नदी या तालाब तक नहीं जा पाते, वे घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करते हैं। इसके बाद घर, रसोई और पूजा स्थल की विशेष सफाई की जाती है ताकि पूरे पर्व में पवित्रता और सात्त्विकता बनी रहे।
- नहाय-खाय प्रसाद (लौका-भात):
- लौकी-चावल का शुद्ध सात्त्विक भोजन
- सेंधा नमक का उपयोग
- प्याज-लहसुन वर्जित
- घर के मिट्टी या कांसे के बर्तन में पकाने की परंपरा
इसी भोजन को प्रसाद मानकर ग्रहण किया जाता है, जिसके बाद व्रती सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का संकल्प लेते हैं।
छठ के चार दिनों की मुख्य विधान
- 1. नहाय-खाय (25 अक्टूबर)स्नान-शुद्धि और सात्त्विक भोजनशरीर-मन की पवित्रता।
- 2. खरना (26 अक्टूबर)निर्जला व्रत, गुड़-खीर और रोटी का प्रसादआत्म-संयम और तप का आरंभ।
- 3. सांध्य अर्घ्य (27 अक्टूबर)अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्यसूर्य की ऊर्जा और जीवनदाता स्वरूप की पूजा।
- 4. उदीयमान सूर्य को अर्घ्य (28 अक्टूबर)घाट पर सुबह का अर्घ्य, व्रत-पूर्तिउगते सूर्य की उपासना, परिवार की मंगलकामना
श्रद्धा, अनुशासन और तप का अद्भुत पर्व
छठ पर्व अन्य व्रतों की तुलना में सबसे कठिन माना जाता है। व्रती बिना नमक, बिना मसाले, बिना भोग-बिलास के, 72 घंटों तक कठोर नियमों और शुद्धता का पालन करते हुए उपवास और नदी-घाट पर सामूहिक पूजा करते हैं।
इस पर्व का मूल संदेश है—
सादगी, स्वच्छता, संयम, प्रकृति के प्रति आभार और सूर्य ऊर्जा का सम्मान।
क्या माना जाता है छठ का महत्व?
- सूर्य को ऊर्जा, आरोग्य, संतान, सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया
- छठी मैया को संतान रक्षा और परिवार के कल्याण की देवी
- प्रकृति, जल, भूमि, वायु और अग्नि—पंचतत्व के प्रति आभार

