ठाकुर गंगटी(गोड्डा) प्रखंड क्षेत्र के प्रचलित मोरडीहा ग्राम में विगत वर्षों की तरह इस वर्ष भी ग्रामीणों द्वारा दुर्गा मंदिर के बगल में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर भागवत कथा ज्ञान यज्ञ कराई जा रही है।कथा के प्रथम दिन प्रख्यात विद्वान कथावाचक स्वामी अभयानंद उर्फ अभिषेक शास्त्री जी महाराज ने कहा कि भागवत कथा मनुष्य के लिए अति आवश्यक है। तुंभंगा नदी के किनारे एक गांव था वहां पर आत्मदेव नाम का एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी धुंधली रहती थी। आत्मदेव तो सज्जन था। लेकिन उसकी पत्नी दुष्ट प्रवृत्ति की थी।आत्मदेव बहुत उदास रहता था। क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं हो रहा था। बहुत बार उसने आत्महत्या करने की भी कोशिश किया लेकिन सफल नहीं हो पाया।एक दिन हताश होकर जंगल की तरफ आत्महत्या करने के लिए निकल गया।रास्ते में उन्हें एक ऋषि मुनि मिले और फिर आत्मदेव ऋषि को अपनी कहानी सुन कर रोने लगा।उपाय पूछने पर ऋषि ने कहा कि मेरे पास अभी तो ऐसा कुछ नहीं है।ऋषि ने आत्मदेव को एक फल दिया और कहा कि इसे ले जाकर पत्नी को खिला देना तो तुमको पुत्र की प्राप्ति होगी।जब वह फल आत्मदेव ने अपनी पत्नी धुंधली को दिया।तो धुंधली ने अपनी सुंदरता को बरकरार रखने के लिए फल नहीं खाया। धुंधली ने इसकी जानकारी अपनी छोटी बहन को दिया।छोटी बहन ने उसे कहा कि मैं गर्भवती हूं मैं अपना बालक तुम्हें दे दूंगी। धुंधली ने गर्भवती होने और बच्चे को जन्म देने का झूठा नाटक किया। और ऋषि मुनि द्वारा दिए गए फल को गाय को खिला दिया।गाय ने जो बच्चों को जन्म दिया तो गोकर्ण रूपी मनुष्य हुआ।गोकर्ण का कान सिर्फ गाय के आकार का था और पूरा शरीर मनुष्य का था।धुंधली की बहन ने जिस बच्चे को जन्म दिया उसका नाम धुंधकारी रखा गया। गोकर्ण बचपन से ही सीधे-साधे संत प्रवृत्ति के निकले और धुंधकारी बिल्कुल व्यभिचारी निकल गया।बाद में धुंधकारी शराब,जुआ आदि तमाम गलत कार्यों में लिप्त हो गया और एक दिन ऐसा हुआ की कई वेश्याओं ने मिलकर धुंधकारी की हत्या कर दिया सभी धन लूट ले गई।धुंधकारी को मुक्ति नहीं मिली और वह प्रेत योनि में चला गया। गोकर्ण संत प्रवृत्ति के हो गए रात्रि में आकर धुंधकारी ने प्रेत के रूप में गोकर्ण को डरने लगा। जब उन्होंने कमंडल का जल लेकर आचमन किया तो धुंधकारी ने बताया कि मैं तुम्हारा भाई धुंधकारी हूं।मैं गलत प्रवृत्ति के कारण प्रेत योनि में चला गया हूं,मुझे मुक्ति दिलवा दो ।धुंधकारी ने कहा कि मुझे भागवत कथा सुनाओ,तो मुझे मुक्ति मिल सकती है।तब गौकर्ण ने विधिवत भागवत कथा का आयोजन कर सात दिनों तक धुंधकारी को भागवत कथा सुनाया। धुंधकारी प्रेत रूपी हवा होने के कारण स्थिर नहीं हो पा रहा था।तब धुंधकारी ने सात बिटटे वाले बांस के अंदर प्रवेश कर ध्यान से भागवत कथा सुनने लगा। बारी-बारी से प्रत्येक दिनों बस का एक-एक बिटटा फटने लगा। सातवें दिन जैसे ही सातवां बिटटा फटा तो धुंधकारी को मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसलिए भागवत कथा सुनना मनुष्य को अति आवश्यक है।कथा में शुरू से अंत तक रहना चाहिए और आरती, प्रसाद लेकर ही वापस अपने गंतव्य की ओर जाना चाहिए वरना भक्ति अधूरी रह जाती है।इस कार्य में मोरडीहा पंचायत युवा शक्ति संघ के तमाम पदाधिकारी, सदस्य,नवयुवक,दुर्गा पूजा समिति के सभी पदाधिकारी,सदस्य, शिक्षाविद,बुजुर्ग, गनमान्य,महिलाएं सहित संपूर्ण मोरडीहा पंचायत वासी सहयोग कर रहे हैं। प्रत्येक दिन ग्रामीणों द्वारा बारी बारी से प्रसाद और महाप्रसाद का भी सामूहिक रूप से व्यवस्था की जा रही है। भागवत कथा में ठाकुर गंगटी प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांवों के साथ-साथ बगलगीर मेहरमा,साहिबगंज जिले के मंडरो आदि प्रखंडों और पड़ोसी राज्य बिहार के भागलपुर जिले के पीरपैंती आदि प्रखंडों के भी हजारों श्रद्धालु भाग ले रहे हैं।



