चंद्रकिशोर पाल जी, नरकटियागंज, पूर्वी चंपारण।
अति पिछड़ा संबंधी आपका विचार पढ़ने को मिला।आप बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहब के साथ काम किए कर देश में बहुजन हिताय के लिए संघर्षरत रहे है। आपकी बहुजन हिताय की बातें अच्छी लगती है। लेकिन हम अति पिछड़ा वर्ग उसी बहुजन समाज का बहुसंखक हिस्सा है। हमारे लिए कौन आवाज उठा रहा है, उसपर मेरा ध्यान है।
बाबा साहब डा अंबेडकर ने कहा है कि इस देश की सेवा करने के लिए लाखों गांधी टैगोर पैदा लेंगे लेकिन हम जिस समाज से आते हैं उसकी सेवा करने के लिए इस वर्ग से अपना नेता चुनना होगा ,कुछ अपवादों को छोड़कर। बाबा साहब अंबेडकर जिस वर्ग में पैदा हुए। उनपर पर हुए जुल्म और शोषण का सामना किये इसलिए बाबा साहब ने सबसे पहले मौलिक अधिकार से वंचित शूद्रों एवम अतिशुद्रों बचितो के लिए संघर्ष किया और उसके लिए कानून बनाया। पिछले वर्गों के लिए भी उन्होंने संविधान में वह बातें लिख दी जो आगे चलकर लागू हुई। मंडल आयोग के एकमात्र दलित सदस्य एल आर नायक की टिप्पणी पर अमल कर लिया गया होता तो आज देश की बहुतसंख्यक अति पिछडी आबादी हाशिए पर नहीं आती।
बाबा साहब अंबेडकर के आंदोलन और बाद के दिनों में लोहिया , कर्पूरी, चौधरी चरण सिंह ,जगदेव प्रसाद इत्यादि के आंदोलन के बाद पिछड़े वर्गों का नेतृत्व पूरे देश में सामने आया। जिनके सहयोग दलित पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वर्ग के सभी हिंदू एवं मुसलमानों ने किया। लेकिन जब हिस्सेदारी की बात आई तो पिछलडे वर्ग के जो हमारे बड़े भाई जो नेतृत्व कर रहे थे उनका भी वयवहार पूर्व के सामंतों की तरह हो गया।उन्होंने अति पिछड़ा के समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया। नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2017 ईस्वी में बिहार की तरह राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ा वर्ग के वर्गीकरण के लिए रोहिणी आयोग का गठन किया। जिसको 6 सप्ताह में रिपोर्ट देना था। उस आयोग ने 31 जुलाई 2023 को महामहिम राष्ट्रपति को रिपोर्ट सोपा। लेकिन विडंबना है कि कोई भी पिछड़ा एवम दलित समर्थित राजनैतिक दलों ने इसकी आवाज नहीं उठाया। यू पी में साथी आयोग के रिपोर्ट के आधार पर पिछड़ा वर्ग के वर्गीकरण का विरोध मुलायम सिंह यादव और बहन मायावती ने करके लागू होने नही दिया। 2 जुलाई 2002 ई को संसद के वर्षाकालीन सत्र मे तत्कालीन सांसद ब्रह्मानंद मंडल और कैप्टन जयनारायण निषाद ने अतिपिछड़ा शैक्षणिक प्रशैक्षणिक बिल पेश किया, उसका सबसे विरोध पिछड़ा वर्ग के क्षत्रप नेताओं ने ही किया था।
एक साजिश के तहत प्रायः सभी राज्यों के पिछडे वर्गों के क्षत्रप नेताओं ने अति पिछड़े वर्ग की जातियों को अनुसूचित जाति और जनजाति में शामिल करने का एक दिवा स्वपन दिखाने का खड्यंत्र शुरू कर दिया। जिसके जाल मे अति पिछड़ा वर्ग के जातियों के तथाकथित क्षत्रप नेता लोग चले गए । बिहार में तो लालू और नीतीश की संयुक्त सरकार ने तेली जैसे साधन संपन्न व्यावसायिक वर्ग की जातियों को अति पिछड़ा वर्ग में शामिल करके जननायक के मूल हिंदू एवं मुसलमान की 110 जातियों की कमर तोड़ दी। समाज के लूटते इस अधिकार के लिए आवाज उठाने पर पिछडे वर्गों के क्षत्रप बिहार के नेताओं ने रामबली सिंह चंद्रवंशी की विधान पार्षद की सदस्यता समाप्त कर दी क्योंकि वह 2015 के बाद अति पिछड़ा वर्ग में शामिल किए हुए जातियों को अति पिछड़ा से हटाने सहित अन्य पांच सूत्री मांगों के लिए सदन से सड़क तक संघर्षर्षील थे।
एक एमएलसी बनने के लिए लोग करोड़ों रुपया देते हैं। लेकिन रामबली सिंह चंद्रवंशी ने समाज के लिए एमएलसी की कुर्सी को समाज के लिए लात मार दिया। अब शायद ही कोई अति पिछड़ा वर्ग का एमपी एमएलए या विधान पार्षद समाज की लूटते जा रहे अधिकार को बचाने के लिए संघर्ष करने की हिम्मत करेगा। आज भी अति पिछड़ा समाज से दर्जनों विधायक, मंत्री एवम सांसद हैं। लेकिन वे अपने दलों के आकाओं के गुलाम है। गुलामों को गुलामी का अहसास कराने के लिए समाज को एक मुद्दा पर एकजुट होकर अपनी खुद की राजनैतिक विकल्प देने का प्रयास करना चाहिए।2015 के बाद बिहार सरकार के सभी क्षेत्रों में हुई बहाली एवम पंचायती राज , निकायों में अति पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का आंकड़ा देखेंगे तो आपको पता चलेगा की 60 से 70% हिस्सा एक खास जाति के लोग ही खा रहे हैं।
अगर 110 हिंदू मुसलमान जिनकी आबादी लगभग 40% है। यदि ये प्रबुद्ध वर्ग विभिन्न मंचों से सामाजिक एवम राजनैतिक आंदोलन कर रहे हैं,तो इसका दूरगामी प्रभाव अच्छा ही होगा।
वैसे हम भी महसूस कर रहे है कि, अति पिछड़ा वर्ग के कुछ नेताओं को सामाजिक आंदोलन मजबूत किए बिना जल्दी बाजी में राजनीतिक लाभ किसी प्रकार प्रकार बिना किसी सिद्धांत को प्राप्त करना चाहते हैं जो समाज के लिए हितकारी नहीं होगा। क्योंकि तेली एवं अन्य जातियों को अति पिछड़ा से हटाने सहित अन्य मुद्दों पर रामबली सिंह चंद्रवंशी के नेतृत्व में आयोजित पदयात्रा एवं आंदोलन में कितने लोग सहभागी बने और इसी मुद्दे पर माननीय सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर आज किन-किन लोगों के द्वारा सहयोग मिल रहा है यह दिखाई पड़ रहा है। अति पिछड़ा वर्ग तीन भागों में विभक्त है। मुस्लिम मूल अति पिछड़ा का इस्लाम खतरे में है। वैश्य अति पिछड़ा वर्ग का हिंदुत्व खतरे में है और कर्पूरी के मूल अति पिछड़ों का अस्तित्व खतरे में हैं। जिस दिन सभी लोगों को अपने अस्तित्व खतरा नजर आयेगा तब ही आंदोलन की धार तेज होगी। इसके लिए ईमानदार , सहनशील, लगनशील, मृदुभाषी नेतृत्व की जरूरत है । इसके लिए हमें अति पिछड़ा के ऐसे भी लोगों से सावधान रहने की जरूरत है जो अपने निजी स्वार्थ में क्षणिक लाभ के लिए समाज को ही गिरवी रख दें। अभी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा माननीय सुप्रीम कोर्ट में किशोरी दास, रामबली सिंह और हेसामुदिन अंसारी द्वारा संयुक्त रूप से दायर याचिका पर ध्यान देने एवम सहयोग करने तथा रोहिणी आयोग के अनुशंसा को लागू करवाना महत्वपूर्ण है। इस मुद्दे पर गोलबंदी जरूरी है। हमें विश्वास है जिस तरह लोगों में जागरूकता के साथ गुस्सा बढ़ता जा रहा है एक में एक दिन अपना हक जरूर लेकर रहेंगे।
